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जब पलटेगा रुपया तो लौटेगी एफआईआई खरीदारी

राजीव रंजन झा : जून के अंतिम हफ्ते में डॉलर के मुकाबले रुपये की ऐतिहासिक कमजोरी ने हर तरफ हाहाकार मचा दिया।
एक डॉलर की कीमत 26 जून को 60.76 रुपये पर पहुँच गयी और यह पहला मौका था जब डॉलर की कीमत 60 रुपये के ऊपर गयी। इससे सरकार बुरी तरह घबरा गयी और यह कहा जा सकता है कि प्राकृतिक गैस की कीमतें बढ़ाने के फैसले में रुपये की इस ऐतिहासिक कमजोरी ने भी कुछ योगदान किया। मंत्रिमंडल के अंदर इस फैसले पर मतभेद की खबरें थीं, लेकिन रुपये की कमजोरी ने विदेशी निवेश को आकर्षित करने के तर्क को मजबूत किया।
हालाँकि रुपये की कमजोरी उस मुकाम पर भी नहीं थमी। सोमवार 8 जुलाई को डॉलर की कीमत 61 रुपये के भी ऊपर चली गयी और इसने 61.21 रुपये का नया रिकॉर्ड भाव छू लिया। सबके सामने यही सवाल है कि क्या इन स्तरों पर रुपये की कमजोरी रुक सकती है? रुपये की कमजोरी-मजबूती बताते समय इतना तो आपको ध्यान होगा ही कि इस चार्ट में डॉलर का भाव जितना ऊपर चढ़ता है, रुपया दरअसल उतना ही कमजोर होता जाता है। आसानी के लिए हम रुपये के सापेक्ष डॉलर की मजबूती-गिरावट की बात कर सकते हैं।
डॉलर की रुपये में कीमत का चार्ट देखें तो इसमें डॉलर की तेजी का ताजा दौर मई के पहले हफ्ते से चालू होता दिख रहा है, जब एक डॉलर की कीमत 53.63 रुपये थी। वहाँ से यह कीमत 26 जून को 60.76 रुपये पर चली गयी। इसके बाद एक जुलाई को डॉलर की कीमत घट कर 58.96 तक गयी। इसके बाद डॉलर का भाव फिर बढ़ने लगा। सोमवार 8 जुलाई को इसकी कीमत 61.21 रुपये तक चढ़ गयी, हालाँकि अंत में यह 60.71 पर बंद हुआ।
अब तक रुपये के सापेक्ष डॉलर ने ऐसा कोई संकेत नहीं दिया है कि इसने अपनी मौजूदा चाल का शिखर बना लिया है। जब यह मई के पहले हफ्ते में तेजी शुरू होने के समय के स्तर 53.63 से लेकर 26 जून के ऊपरी स्तर 60.76 (जिस दिन पहली बार यह 60 के ऊपर गया) तक की उछाल के बाद नीचे लौटा, तो उस समय जरूर लगा कि शायद इसने शिखर बना लिया है। लेकिन एक जुलाई को 53.63 से 60.76 तक की उछाल की 23.6% वापसी के स्तर 59.08 के नीचे जाने के बाद भी वहाँ एकदम टिक नहीं पाया। इसके अगले ही दिन से इसने फिर ऊपरी शिखर और ऊपरी तलहटियाँ बनानी शुरू कर दी। और अब तो 61 के ऊपर का भाव साफ तौर पर बता रहा है कि 60.76 पर शिखर बनने की उम्मीद बेकार गयी।
अब यह संभावना बन रही है कि अगली उछाल में डॉलर का भाव 62 रुपये के भी ऊपर चला जाये।  दरअसल डॉलर ने 14 जून को 57.40 पर एक छोटी तलहटी बनाने के बाद 60.76 तक की उछाल भरी थी। इसके बाद यह एक जुलाई को 58.96 तक नीचे लौटा। अगर इस उतार-चढ़ाव के आधार पर फिबोनाकी प्रोजेक्शन स्तरों को देखें तो 60.76 के ऊपर निकलने पर डॉलर की कीमत करीब 61 रुपये और उसके बाद 62.32 के लक्ष्य बनते हैं। इनमें पहला लक्ष्य तो पूरा हो चुका, अब दूसरे लक्ष्य की ओर बढ़ना स्वाभाविक लग रहा है।
यानी डॉलर के मुकाबले रुपये में कमजोरी का सिलसिला और आगे बढ़ने की संभावनाएँ काफी हैं, बशर्ते आने वाले दिनों में यह अपने 20 दिनों के सिंपल मूविंग एवरेज (एसएमए) के नीचे न फिसले। अभी इसका 20 एसएमए 59.31 पर है। हालाँकि 10 एसएमए को भी चाल पलटने के शुरुआती संकेत के तौर पर देखा जा सकता है, लेकिन जुलाई के पहले हफ्ते में डॉलर 10 एसएमए के नीचे आने के बाद फिर से तेज होकर छका चुका है। इसलिए 20 एसएमए को ज्यादा तवज्जो देना ठीक रहेगा।
डॉलर और रुपये का यह समीकरण शेयर बाजार की चाल के लिए भी महत्वपूर्ण है। जब तक रुपये में कमजोरी जारी रहने का अंदेशा रहेगा, तब तक विदेशी संस्थागत निवेशकों के लिए भारत में नया निवेश करना आकर्षक नहीं होगा। हालाँकि इन स्तरों पर शेयरों की बिकवाली करना भी उनके लिए दोहरे घाटे का सौदा है। एक तो शेयरों के भाव कम मिलेंगे, दूसरे रुपये को डॉलर में बदलने पर हाथ में कम डॉलर आयेंगे।
दूसरी ओर, जब उन्हें लगेगा कि रुपया वापस मजबूती हासिल करने लगा है तो वे भारतीय शेयर बाजार में नया निवेश लाना चाहेंगे। ऐसा करने से उन्हें दोहरा लाभ होगा। एक तो उन्हें शेयरों के मौजूदा निचले भावों पर निवेश का मौका मिलेगा, साथ ही उन्हें भविष्य में डॉलर के मुकाबले रुपये में मजबूती के चलते अतिरिक्त फायदा होगा। Rajeev Ranjan Jha
(शेयर मंथन, 09 जुलाई 2013)

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