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खेल बाजार का : चित मैं जीता और पट तुम हारे

राजीव रंजन झा : बाजार में अक्सर बुनियादी बातों के आधार पर निवेश करने और तकनीकी आधार पर बाजार की दिशा समझने में एक विरोधाभास दिखता है।

जिस समय बुनियादी रूप से कोई शेयर आपको बड़ा सस्ता लगेगा, उस समय तकनीकी विश्लेषण उस शेयर को बेहद कमजोर और बेचने लायक बतायेगा। जिस समय बुनियादी रूप से कोई शेयर बड़ा महँगा दिख रहा हो, उस समय तकनीकी चार्ट पर वह शेयर बड़ा मजबूत दिखेगा और उसमें आगे और बड़ी चाल आने की उम्मीदें दिखेंगी। इस समय यह विरोधाभास बनना शुरू हो चुका है और अगर बाजार में गिरावट और बढ़ी तो यह विरोधाभास भी और तीखा होता चला जायेगा।
तकनीकी रूप से बाजार कमजोर ही लग रहा है, हालाँकि इन्हीं स्तरों से एकदम पलट कर तीखी वापसी की संभावना को नकारा नहीं जा सकता। लेकिन जब तक वापस पलटने के संकेत मिलने शुरू नहीं होते, तब तक केवल इस उम्मीद के सहारे आप बैठे नहीं रह सकते। विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) की बिकवाली भी पिछले हफ्ते कुछ तीखी हो गयी। महँगाई और ब्याज दरों की तस्वीर ने बाजार की चिंता को बढ़ा ही रखा है।
लेकिन थोड़ी हैरानी इस बात से होती है कि विश्व बाजारों की सुधरती स्थिति को भारतीय बाजार के लिए नकारात्मक रूप में पेश किया जा रहा है। कुछ समय पहले तक बाजार की तेजी को लेकर शंका में पड़े लोगों का तर्क होता था कि विश्व अर्थव्यवस्था अब भी संकट से बाहर नहीं निकली है, इसलिए भारतीय बाजार में तेजी टिक नहीं सकती। अब यह तर्क पलट कर पेश किया जा रहा है। कहा जा रहा है कि विश्व अर्थव्यवस्था सुधर रही है, इसलिए भारतीय बाजार कमजोर हो रहा है।
पहले जब लोग भारतीय बाजार की लगातार तेजी को स्वीकार नहीं कर पा रहे थे तो उनका तर्क था कि अमेरिका और यूरोप के कमजोर बने रहने के चलते भारतीय बाजार में इस तरह की तेजी टिक नहीं सकती। लेकिन मई 2009 से ही बाजार उनके राग को अनसुना करता रहा। पहले यूरोपीय देशों के कर्ज संकट का मातम मनाने वाले विशेषज्ञ आज कह रहे हैं कि यूरोपीय अर्थव्यवस्था में सुधार के चलते विदेशी निवेशक भारतीय बाजार से बाहर जा रहे हैं। चित भी भारत के खिलाफ और पट भी भारत के खिलाफ! दरअसल लोग पहले अपना नजरिया बनाते हैं और फिर उसके समर्थन में तर्क खोजते हैं। जो कुछ घट रहा होता है, लोग उसके कारण तलाशते हैं और जो कारण सामने दिख जाये उसी का गाना गाने लगते हैं। सच यही है कि बाजार आगे क्या करेगा यह किसी को नहीं मालूम। हमें तो बस अलग-अलग संभावनाएँ समझ कर खुद को तैयार रखना होगा। Rajeev Ranjan Jha
(शेयर मंथन, 31 जनवरी 2011)

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