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निफ्टी (Nifty) 5800 के नीचे फिसला तो चिंता होगी

राजीव रंजन झा : जून के अंतिम हफ्ते में बाजार ने इसी तरह अचानक पलटी मारी है। 
सेंसेक्स (Sensex) ने 24 जून से 28 जून के बीच केवल चार दिनों में 18467 की तलहटी से 28 जून के ऊपरी स्तर 19433 तक 966 अंक की छलाँग लगा ली। इसी तरह निफ्टी (Nifty) इन चार दिनों में 5566 से 5853 तक चढ़ कर 287 अंक यानी 5% से ज्यादा उछल गया। इसमें सबसे ज्यादा योगदान शुक्रवार 28 जून की उछाल का रहा। दरअसल गुरुवार 27 जून को केंद्र सरकार ने प्राकृतिक गैस की कीमत दोगुनी कर 8.4 डॉलर प्रति एमबीटीयू किये जाने का फैसला किया। इसका उत्साह बाजार में 28 जून को दिखा और सेंसेक्स ने एक ही दिन में सवा पाँच सौ अंक की छलाँग लगा ली।
लेकिन क्या यह मान लें कि बाजार की मई-जून की गिरावट थम गयी है और इसने फिर से ऊपर की ओर नयी चाल शुरू कर दी है? इस सवाल का जवाब काफी हद तक इस बात पर निर्भर है कि क्या सेंसेक्स और निफ्टी 200 दिनों के सिंपल मूविंग एवरेज (एसएमए) के ऊपर टिक पाते हैं? अगर ये इसके ऊपर टिक सके, तो भी आगे आने वाले दिनों में अच्छी बढ़त हासिल करने के लिए इन्हें 50 एसएमए की चुनौती को पार करना होगा। अभी सेंसेक्स का 200 एसएमए 19187 पर और 50 एसएमए 19508 पर है और 28 जून का इसका बंद स्तर 19396 इन्हीं दोनों मूविंग एवरेज के बीच है। निफ्टी का 200 एसएमए 5818 पर और 50 एसएमए 5916 पर है।
साथ में अगर निफ्टी की 6229 से 5566 तक की गिरावट की वापसी के स्तरों पर गौर करें तो निफ्टी के लिए आगे 5898 पर 50% वापसी है। इसलिए 5900-5920 के दायरे में पहली महत्वपूर्ण बाधा बनती है। इसके आगे जाने पर 6229-5566 की गिरावट की 61.8% वापसी 5976 पर है, यानी एक बार फिर मोटे तौर पर 6000 के ऊपर निकलने की जद्दोजहद होगी। सेंसेक्स के लिए 20444-18467 की 61.8% वापसी 19689 पर है।
सेंसेक्स 19500 और निफ्टी 5900 के ऊपर जाकर टिके सकें, तभी जून के अंतिम हफ्ते में दिखी उछाल ज्यादा आगे बढ़ सकेगी। वहीं अगर सेंसेक्स 19200 से नीचे और निफ्टी 5800 से नीचे फिसलने लगे तो बाजार फिर से कमजोर होता दिखेगा और जून की तलहटी से नीचे जाना साफ तौर पर खतरे की घंटी बजने जैसा होगा।
इस बीच रुपये के चार्ट को देख कर लगता है कि फिलहाल इसकी कमजोरी शायद रुक सकती है। समझने में आसानी के लिए हमें रुपये का चार्ट नहीं, डॉलर की रुपये में कीमत का चार्ट देखना चाहिए। इस चार्ट में डॉलर का भाव जितना ऊपर चढ़ता है, रुपया दरअसल उतना ही कमजोर होता जाता है।
इस चार्ट में डॉलर की तेजी का ताजा दौर मई के पहले हफ्ते से चालू होता दिख रहा है, जब एक डॉलर की कीमत 53.63 रुपये थी। यह कीमत 26 जून को 60.76 रुपये पर पहुँच गयी। पहली बार डॉलर की कीमत 60 रुपये के ऊपर गयी। हालाँकि केवल दो दिन 60 के ऊपर रहने के बाद डॉलर 28 जून को इस मनोवैज्ञानिक स्तर के नीचे लौटता दिखा।
आने वाले दिनों में अगर डॉलर की कीमत 53.63-60.76 की उछाल की 23.6% वापसी के स्तर 59.08 रुपये के नीचे आ गयी तो काफी संभावना रहेगी कि यह 38.2% वापसी के स्तर 58.03 की ओर भी बढ़ जाये। दूसरी ओर अगर अगले कुछ दिनों में यह 59 रुपये के नीचे नहीं लौटा तो यह संभावना बनेगी कि अगली उछाल में यह जून के शिखर को भी पार करके नये रिकॉर्ड स्तर पर चला जाये। यानी डॉलर के मुकाबले रुपये में कमजोरी का सिलसिला और आगे बढ़ जाये। इस तरह मोटे तौर पर डॉलर की कीमत 59 के ऊपर बनी रहती है, या इसके नीचे लौटती है, इस पर बारीकी से नजर रखनी चाहिए।
यह बात शेयर बाजार की चाल के लिए भी महत्वपूर्ण है। जब तक रुपये में कमजोरी जारी रहने का अंदेशा रहेगा, तब तक विदेशी संस्थागत निवेशकों के लिए भारत में नया निवेश करना आकर्षक नहीं होगा। दूसरी ओर, अगर उन्हें लगा कि रुपया वापस मजबूती हासिल कर रहा है तो वे भारतीय शेयर बाजार में नया निवेश लाना चाहेंगे। ऐसा करने से उन्हें दोहरा लाभ होगा। एक तो उन्हें शेयरों के मौजूदा निचले भावों पर निवेश का मौका मिलेगा, साथ ही उन्हें भविष्य में डॉलर के मुकाबले रुपये में मजबूती के चलते अतिरिक्त फायदा होगा। Rajeev Ranjan Jha
(शेयर मंथन, 01 जुलाई 2013)

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