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एफ ओ एफ पर सेबी के नये नियम निवेशकों के लिए निवेश की राह आसान बनायेंगे

अगर आप निवेश की दुनिया में कदम रख चुके हैं या म्यूचुअल फंड्स में निवेश करते हैं, तो आपने शायद कई बार ये सोचा होगा कि कौन-सा फंड आपके लिए सबसे बेहतर है। हर दिन म्यूचुअल फंड्स के नये विकल्प बाजार में आते हैं, जिससे निवेशकों को निर्णय लेने में उलझन होती है। ऐसे में सेबी की ओर से फंड ऑफ फंड्स को लेकर लाये गये नये नियम आपके लिए बड़ी राहत बन सकते हैं।

क्या होते हैं फंड ऑफ फंड्स?

फंड ऑफ फंड्स ऐसे म्यूचुअल फंड्स होते हैं जो सीधे शेयर, बॉन्ड या सिक्योरिटीज में निवेश नहीं करते, बल्कि दूसरे म्यूचुअल फंड्स में निवेश करते हैं। ये निवेशकों को एक ही फंड के जरिये कई म्यूचुअल फंड्स का फायदा लेने का मौका देता है। इसका सबसे बड़ा फायदा ये है कि आपके पैसे खुद-ब-खुद एक डायवर्सिफाइड पोर्टफोलियो में लगते हैं, जिससे जोखिम कम होता है।

अब तक एफ ओ एफ से जुड़ी क्या समस्याएँ थीं?

एफ ओ एफ को लेकर अब तक निवेशकों के सामने कई समस्याएँ होती थीं। जैसे टैक्सेशन को लेकर कोई सफाई नहीं थी। एफ ओ एफ पर लगने वाला टैक्स दूसरे म्यूचुअल फंड्स के मुकाबले अधिक था। निवेशकों को ये समझने में मुश्किल होती थी कि उन्हें एफ ओ एफ में निवेश करना चाहिए या नहीं। इन कारणों से कई निवेशक इस विकल्प से दूरी बनाए रखते थे, भले ही ये उनके लिए फायदेमंद हो सकता था।

अब क्या बदला है?

सेबी ने हाल ही में एफ ओ एफ से जुड़े नियमों में बदलाव किया है, जिससे अब ये विकल्प और अधिक आकर्षक बन गया है। जैसे अगर आप 24 महीने (2 साल) से अधिक समय तक किसी एफ ओ एफ में निवेश करते हैं, तो केवल 12.5% का टैक्स देना होगा। ये उन निवेशकों के लिए बेहतरीन खबर है जो लॉन्ग टर्म निवेश में विश्वास रखते हैं और टैक्स सेविंग की योजना बना रहे हैं।

सेबी ने एफ ओ एफ को 6 मुख्य श्रेणियों में बांट दिया है, जैसे:

1) घरेलू इक्विटी एफ ओ एफ

2) अंतरराष्ट्रीय इक्विटी एफ ओ एफ

3) हाइब्रिड एफ ओ एफ

4) डेट एफ ओ एफ

5) गोल्ड एफ ओ एफ

6) अन्य वैकल्पिक क्लास

इस बंटवारे से निवेशकों को ये तय करने में आसानी होगी कि उन्हें किस श्रेणी में निवेश करना है, और ये उनके निवेश लक्ष्य और जोखिम सहने की क्षमता के मुताबिक चुनाव को आसान बनाएगा।

निवेशकों के लिए फायदे की बात

1) डायवर्सिफिकेशन : एक ही एफ ओ एफ में निवेश करके आप कई म्यूचुअल फंड्स में हिस्सेदारी पा सकते हैं।

2) कम टैक्स बोझ : अब लंबी अवधि के निवेश पर टैक्स कम लगने से रिटर्न बेहतर हो सकता है।

3) री-बैलेंसिंग का फायदा : अगर फंड हाउस अपने पोर्टफोलियो में बदलाव करता है, तो आपको उस पर बार-बार टैक्स नहीं देना पड़ेगा।

4) जानकारों की देखरेख : ये उन निवेशकों के लिए खासकर फायदेमंद है जो खुद रिसर्च नहीं करना चाहते, बल्कि चाहते हैं कि कोई जानकार उनकी ओर से फंड को चुने।

किन बातों का रखें ध्यान?

हालाँकि एफ ओ एफ निवेश का एक आसान विकल्प है, फिर भी कुछ सावधानियाँ जरूरी हैं, जैसे :

1) सभी एफ ओ एफ अच्छे नहीं होते। कुछ एफ ओ एफ में फीस अधिक और रिटर्न कम हो सकता है।

2) डायवर्सिफिकेश के बावजूद रिटर्न की गारंटी नहीं होती। इसलिए हमेशा ये देखें कि एफ ओ एफ किन फंड्स में निवेश कर रहा है और उस फंड का पिछला प्रदर्शन क्या रहा है।

अंत में कुछ काम की बात

अगर आप एक ऐसा निवेश विकल्प तलाश रहे हैं जो आसान, डायवर्सिफाइड, और टैक्स-फ्रेंडली होने के साथ ही जानकारों की निगरानी में चलता हो, तो फंड ऑफ फंड्स यानी एफ ओ एफ को चुन सकते हैं। हालाँकि, निवेश से पहले ये सलाह दी जाती है कि आप अपने वित्तीय सलाहकार से सलाह जरूर लें, ताकि आपका निवेश आपकी जरूरतों और जोखिम प्रोफाइल के मुताबिक हो।

(शेयर मंथन, 09 मई 2025)

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