
भारत की एसेट मैनेजमेंट इंडस्ट्री इस समय एक बड़े संरचनात्मक बदलाव के दौर से गुजर रही है। ये परिवर्तन कई कारणों से प्रेरित है—निवेशकों की बढ़ती परिपक्वता, फिनटेक तकनीक का तेजी से अपनाया जाना, और नियामकीय सुधार।
इन बदलावों का सबसे बड़ा असर ये हुआ है कि अब निवेश केवल अमीरों और जानकारों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि युवा, डिजिटल रूप से सशक्त निवेशक भी अब इसमें बड़ी भूमिका निभा रहे हैं। खासतौर से डायरेक्ट म्यूचुअल फंड योजनाओं में एसेट अंडर मैनेजमेंट (एयूएम) का लगातार बढ़ना इस बदलाव का स्पष्ट संकेत है।
मार्च 2025 तक म्यूचुअल फंड इंडस्ट्री के इक्विटी एयूएम में डायरेक्ट प्लान की हिस्सेदारी 30% तक पहुँच चुकी है, जो मार्च 2020 में मात्र 21% थी। ये बढ़ोतरी दर्शाती है कि निवेशक अब ज्यादा शुल्क लेने वाले रेगुलर प्लान की तुलना में कम लागत वाले, स्वयं द्वारा नियंत्रित निवेश को प्राथमिकता दे रहे हैं। ये निवेश संस्कृति में एक ठोस और स्थायी बदलाव की ओर इशारा करता है।
इस परिवर्तन की रफ्तार को फिनटेक प्लेटफॉर्म ने और तेज किया है। इन प्लेटफॉर्म्स ने निवेश की प्रक्रिया को इतना सरल और सुलभ बना दिया है कि अब कोई भी व्यक्ति बिना किसी एजेंट के, खुद से निवेश शुरू कर सकता है। ये प्लेटफॉर्म कमीशन फ्री निवेश, तेज डिजिटल ऑनबोर्डिंग और यूजर फ्रेंडली इंटरफेस प्रदान करते हैं, जिससे निवेशकों को पारंपरिक रुकावटों से मुक्ति मिलती है। हालाँकि, कॉरपोरेट निवेशक अब भी डायरेक्ट एयूएम में 61% हिस्सेदारी रखते हैं, लेकिन खुदरा निवेशकों की भागीदारी में भी खासकर एसआईपी के जरिये तेजी से बढ़ोतरी हो रही है।
18 से 34 वर्ष की आयु के युवाओं में डायरेक्ट एसआईपी की हिस्सेदारी मार्च 2024 में बढ़कर 23.6% तक पहुँच गई, जो ये दर्शाता है कि देश का युवा वर्ग अब निवेश को लेकर गंभीर हो रहा है और वित्तीय निर्णयों में अधिक भागीदारी ले रहा है। ये ही नहीं, भारत के बी 30, यानी शीर्ष 30 शहरों से परे के क्षेत्रों में म्यूचुअल फंड्स की पैठ भी तेजी से गहरी हो रही है। ये एक महत्वपूर्ण ग्रोथ फैक्टर बन गया है।
बी30 क्षेत्रों में इक्विटी एयूएम ने वित्त वर्ष 2020 से वित्त वर्ष 2025 के बीच 37% की सीएजीआर की दर्ज है। इसका श्रेय वित्तीय साक्षरता में वृद्धि, डिजिटल टेक्नोलॉजी के बढ़ते इस्तेमाल और एम्फी के जागरूकता अभियानों को जाता है। इन छोटे शहरों में डायरेक्ट प्लान की लोकप्रियता भी बढ़ रही है, जहाँ अब महिलाएँ और युवा अधिक आत्मनिर्भर हो रहे हैं और निवेश के प्रति जागरूक भी।
हालाँकि डायरेक्ट प्लान की लोकप्रियता बढ़ रही है, फिर भी रेगुलर प्लान में निवेश अनुशासन ज्यादा मजबूत दिखाई देता है। केवल 7.7% डायरेक्ट प्लान एयूएम ही ऐसा है जिसे पाँच साल से अधिक समय तक होल्ड किया गया, जबकि रेगुलर प्लान में ये आँकड़ा 21.2% है। इससे ये साबित होता है कि प्रोफेशनल वित्तीय सलाहकारों की भूमिका आज भी महत्त्वपूर्ण है, खासकर उन खुदरा निवेशकों के लिए जो बाजार के उतार-चढ़ाव के समय जल्दबाजी में निर्णय ले लेते हैं।
निवेश के दृष्टिकोण से देखा जाए तो एसेट मैनेजमेंट कंपनियाँ भी इस बदलाव के अनुरूप अपने आपको ढाल रही हैं। अग्रणी एसेट मैनेजमेंट कंपनियाँ अब अपने डिजिटल प्लेटफॉर्म्स को मजबूत बना रही हैं और ट्रेल-बेस्ड कमीशन मॉडल की ओर बढ़ रही हैं। इसका उद्देश्य ये है कि वे दोनों तरह के निवेशकों—स्वतंत्र निवेशकों और वित्तीय सलाहकारों के मार्गदर्शन में निवेश करने वालों—की जरूरतों को पूरा कर सकें। इस तरह वे नवाचार और सलाह को संतुलित करते हुए बाजार में अपनी स्थिति को और मजबूत बना रही हैं। दूसरी ओर, डिस्ट्रीब्यूटर-आधारित मॉडल को कुछ चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, खासकर डायरेक्ट प्लान की बढ़ती लोकप्रियता के चलते। फिर भी, इनकी बी30 क्षेत्रों में गहरी पकड़ और डिजिटल रूपांतरण की प्रक्रिया इन्हें पूरी तरह से अप्रासंगिक नहीं होने देती। ऐसे में ये मॉडल भी बदलाव के साथ सामंजस्य बिठा रहे हैं।
कुल मिलाकर, एसेट मैनेजमेंट सेक्टर अब एक दीर्घकालिक विकास चक्र की दहलीज पर खड़ा है। इसमें खुदरा निवेशकों की बढ़ती भागीदारी, डायरेक्ट प्लान का विस्तार और बचत व्यवहार में आ रहे बदलाव प्रमुख भूमिका निभा रहे हैं। ये क्षेत्र अपने स्केलेबल बिजनेस मॉडल्स, मज़बूत ब्रांड वैल्यू और भारत की दीर्घकालिक वित्तीय समावेशन रणनीति के साथ पूरी तरह से मेल खाता है। निवेशकों को इस सेक्टर को एक रणनीतिक अवसर के रूप में देखना चाहिए, खासकर तब जब भारत की अर्थव्यवस्था तेजी से डिजिटलीकरण और वित्तीय जागरूकता की ओर अग्रसर है। ये न सिर्फ बेहतर रिटर्न की संभावना देता है, बल्कि देश की आर्थिक संरचना में एक स्थायी योगदान देने का अवसर भी प्रदान करता है।
(शेयर मंथन, 28 मई 2025)
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